©संध्या पेडणेकर
पढ़ाई जब से ऑनलाइन करने की बात चली है तब से एक बात के बारे में लोग चिंतित दिखाई देते हैं। आज के हालात में मध्यवर्गीय परिवारों में एक से अधिक स्मार्टफोन्स खरीदना कठिन है। सो, घर में अगर एक से अधिक पढ़ने वाले बच्चे हों तो एक ही समय चलनेवाली कक्षाओं का लाभ सब कैसे लें?
इस समस्या का एक हल है कास्टिंग। कास्टिंग से मतलब है फोन पर दिखाई देनेवाले कार्यक्रम टीवी के पर्दे पर भेजना। इस प्रकार, एक मोबाइल पर एक समय जहां हद से हद चार-पांच बच्चे देख-सुन सकते हैं वहीं टीवी के परदे पर दस-पंद्रह बच्चे पढ़ने का लाभ ले सकते हैं। हां, इसके लिए मोबाइल और टीवी में यह क्षमता होना ज़रूरी है।
अगर पिछले दो-चार सालों में आपने नया स्मार्ट फोन और टीवी खरीदा है तो हो सकता है आपके फोन और टीवी में यह सुविधा इनबिल्ट हो, फोन और टीवी के साथ ही मिल रही हो। पता न हो तो अपने फोन और टीवी के मॉडल में यह सुविधा उपलब्ध है या नहीं इस बारे में इंटरनेट से पता किया जा सकता है। अगर सुविधा हो, तो उसका लाभ ज़रूर उठाएं। फोन में सुविधा न भी हो तब भी कुछेक अन्य सुविधाएं हैं जिनके सहारे इस तकनीक का फायदा लिया जा सकता है।
कई एप्स ऐसे हैं जो स्मार्ट फोन को टीवी से जोड़ सकते हैं। उनके जरिये टीवी पर फोन पर चलनेवाले कार्यक्रमों को देखा-सुना जा सकता है। प्ले स्टोर में ऐसे कई ऍप्स मुफ्त में भी उपलब्ध हैं।
कुछ उपकरण ऐसे भी हैं जो बाहर से लगा कर मोबाइल के परदे पर चल रहे कार्यक्रम टीवी के परदे पर देखे जा सकते हैं। गूगल पर Casting devices के बारे ढूंढ कर इस बारे में जानकारी पाई जा सकती है। *
हालांकि कास्टिंग से समय का मसला हल नहीं होता। उसके लिए दो उपाय किए जा सकते हैं। पहला उपाय अॉनलाइन कक्षाएं चलाने वाली संस्थाओं को अपनाना होगा जिसके तहत वे एक समय एक ही कक्षा की क्लास चलाएं। जिस प्रकार स्कूलों में एक कक्षा की विभिन्न विषयों की कक्षाएं एक के बाद एक चलती हैं उसी प्रकार अॉनलाइन कक्षाएं एक के बाद एक कक्षावार रखी जाएं। ताकि एक घर में एक फोन पर विभिन्न कक्षाओं में पढ़नेवाले बच्चों की पढ़ाई हो सके। साथ ही, टीवी के कार्यक्रमों की तरह कक्षाओं का रिपीट प्रसारण भी करना होगा। सोचना यह भी चाहिए कि, इस मामले में क्या निजी तौर पर भी कुछ करना संभव है?
इसका जवाब सकारात्मक हां में दिया जा सकता है। कास्टिंग का सही इस्तेमाल भी आप यहीं पा सकते हैं। इन कक्षाओं की रिकार्डिंग कर अपने बच्चों के समय-सुविधानुसार उन्हें दिखाया जाय।
दूसरे, एक घर में अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे हों तो पास पड़ोस में और भी घर हो सकते हैं जहां एक घर में अलग अलग कक्षाओं में पढ़नेवाले बच्चे हों। ऐसे में, एक कक्षा में पढ़ने वाले पास-पडोस के सभी बच्चे किसी एक घर में एक साथ पढ़ सकते हैं। ऐसे में, मास्क लगाना, शारीरिक दूरी बनाए रखने जैसी अवश्यंभावी सावधानियां बरतना जरूरी है। लेकिन, नये उपकरण खरीदने की तुलना में यह करना आसान है। साथ ही इस तरीके को अपनाकर ऊर्जा की बचत तो होगी ही, एक और लाभ भी पा सकते हैं जो काफी महत्वपूर्ण है। इस तरीके को अपनाने से बच्चे में सामाजिक जीवन की सूझबूझ विकसित होगी, हम उम्र बच्चों के साथ उनका संवाद, विचारों-भावों का आदान-प्रदान संभव होगा। ये बातें बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए कितनी आवश्यक हैं यह बताने के लिए किसी मनोविशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं। बच्चों में सहकारिता का भाव पनपने-बढ़ने में ऑनलाइन चलने वाली क्लासेस में सहकारितावाला सहभाग फायदेमंद ही साबित होगा। साथ ही, इससे बच्चों का अन्य बच्चों के साथ संवाद भी संभव है। इससे घर की चारदीवारी में बंद रहने से उन्हें कुछ समय के लिए छुट्टी मिल सकती है।
हालांकि, बच्चों की सुविधाओं का ध्यान रखने और उन पर अदृश्य तरीके से ध्यान रखने की पालकों की जिम्मेदारी थोडी बढ़ जाएगी, लेकिन कल जिनके हाथों में घर की, देश की बागडोर आनेवाली हो उनके लिए आज जो करना संभव है वह करने में न किसी पालक और न ही किसी जिम्मेदार नागरिक को ऐतराज होगा।
आनेवाले समय में मानव जीवन मशीनों पर, तकनीक पर अधिकाधिक निर्भर होगा। शिक्षा का भविष्य भी इसी रास्ते गुजरना तय है। आज जो स्थितियां हैं वे बस किसी व्यवस्था के सुचारु रूप से लागू होने से पहले की, शुरुआती मुश्किलें हैं। अभी यह व्यवस्था शैशवकाल की 'घुटरुनी चलत' स्थिति में है। जिसने इस स्थिति को लांघ कर चलना सीखा, भविष्य उसीका है। उस भविष्य की ओर भावी पीढ़ी को ले जाने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी की है। आइए, हम सब अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरा-पूरा योगदान देने का प्रण करें।
इस समस्या का एक हल है कास्टिंग। कास्टिंग से मतलब है फोन पर दिखाई देनेवाले कार्यक्रम टीवी के पर्दे पर भेजना। इस प्रकार, एक मोबाइल पर एक समय जहां हद से हद चार-पांच बच्चे देख-सुन सकते हैं वहीं टीवी के परदे पर दस-पंद्रह बच्चे पढ़ने का लाभ ले सकते हैं। हां, इसके लिए मोबाइल और टीवी में यह क्षमता होना ज़रूरी है।
अगर पिछले दो-चार सालों में आपने नया स्मार्ट फोन और टीवी खरीदा है तो हो सकता है आपके फोन और टीवी में यह सुविधा इनबिल्ट हो, फोन और टीवी के साथ ही मिल रही हो। पता न हो तो अपने फोन और टीवी के मॉडल में यह सुविधा उपलब्ध है या नहीं इस बारे में इंटरनेट से पता किया जा सकता है। अगर सुविधा हो, तो उसका लाभ ज़रूर उठाएं। फोन में सुविधा न भी हो तब भी कुछेक अन्य सुविधाएं हैं जिनके सहारे इस तकनीक का फायदा लिया जा सकता है।
कई एप्स ऐसे हैं जो स्मार्ट फोन को टीवी से जोड़ सकते हैं। उनके जरिये टीवी पर फोन पर चलनेवाले कार्यक्रमों को देखा-सुना जा सकता है। प्ले स्टोर में ऐसे कई ऍप्स मुफ्त में भी उपलब्ध हैं।
कुछ उपकरण ऐसे भी हैं जो बाहर से लगा कर मोबाइल के परदे पर चल रहे कार्यक्रम टीवी के परदे पर देखे जा सकते हैं। गूगल पर Casting devices के बारे ढूंढ कर इस बारे में जानकारी पाई जा सकती है। *
हालांकि कास्टिंग से समय का मसला हल नहीं होता। उसके लिए दो उपाय किए जा सकते हैं। पहला उपाय अॉनलाइन कक्षाएं चलाने वाली संस्थाओं को अपनाना होगा जिसके तहत वे एक समय एक ही कक्षा की क्लास चलाएं। जिस प्रकार स्कूलों में एक कक्षा की विभिन्न विषयों की कक्षाएं एक के बाद एक चलती हैं उसी प्रकार अॉनलाइन कक्षाएं एक के बाद एक कक्षावार रखी जाएं। ताकि एक घर में एक फोन पर विभिन्न कक्षाओं में पढ़नेवाले बच्चों की पढ़ाई हो सके। साथ ही, टीवी के कार्यक्रमों की तरह कक्षाओं का रिपीट प्रसारण भी करना होगा। सोचना यह भी चाहिए कि, इस मामले में क्या निजी तौर पर भी कुछ करना संभव है?
इसका जवाब सकारात्मक हां में दिया जा सकता है। कास्टिंग का सही इस्तेमाल भी आप यहीं पा सकते हैं। इन कक्षाओं की रिकार्डिंग कर अपने बच्चों के समय-सुविधानुसार उन्हें दिखाया जाय।
दूसरे, एक घर में अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे हों तो पास पड़ोस में और भी घर हो सकते हैं जहां एक घर में अलग अलग कक्षाओं में पढ़नेवाले बच्चे हों। ऐसे में, एक कक्षा में पढ़ने वाले पास-पडोस के सभी बच्चे किसी एक घर में एक साथ पढ़ सकते हैं। ऐसे में, मास्क लगाना, शारीरिक दूरी बनाए रखने जैसी अवश्यंभावी सावधानियां बरतना जरूरी है। लेकिन, नये उपकरण खरीदने की तुलना में यह करना आसान है। साथ ही इस तरीके को अपनाकर ऊर्जा की बचत तो होगी ही, एक और लाभ भी पा सकते हैं जो काफी महत्वपूर्ण है। इस तरीके को अपनाने से बच्चे में सामाजिक जीवन की सूझबूझ विकसित होगी, हम उम्र बच्चों के साथ उनका संवाद, विचारों-भावों का आदान-प्रदान संभव होगा। ये बातें बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए कितनी आवश्यक हैं यह बताने के लिए किसी मनोविशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं। बच्चों में सहकारिता का भाव पनपने-बढ़ने में ऑनलाइन चलने वाली क्लासेस में सहकारितावाला सहभाग फायदेमंद ही साबित होगा। साथ ही, इससे बच्चों का अन्य बच्चों के साथ संवाद भी संभव है। इससे घर की चारदीवारी में बंद रहने से उन्हें कुछ समय के लिए छुट्टी मिल सकती है।
हालांकि, बच्चों की सुविधाओं का ध्यान रखने और उन पर अदृश्य तरीके से ध्यान रखने की पालकों की जिम्मेदारी थोडी बढ़ जाएगी, लेकिन कल जिनके हाथों में घर की, देश की बागडोर आनेवाली हो उनके लिए आज जो करना संभव है वह करने में न किसी पालक और न ही किसी जिम्मेदार नागरिक को ऐतराज होगा।
आनेवाले समय में मानव जीवन मशीनों पर, तकनीक पर अधिकाधिक निर्भर होगा। शिक्षा का भविष्य भी इसी रास्ते गुजरना तय है। आज जो स्थितियां हैं वे बस किसी व्यवस्था के सुचारु रूप से लागू होने से पहले की, शुरुआती मुश्किलें हैं। अभी यह व्यवस्था शैशवकाल की 'घुटरुनी चलत' स्थिति में है। जिसने इस स्थिति को लांघ कर चलना सीखा, भविष्य उसीका है। उस भविष्य की ओर भावी पीढ़ी को ले जाने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी की है। आइए, हम सब अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरा-पूरा योगदान देने का प्रण करें।