©संध्या पेडणेकर
प्रेम और भक्ति में एक समानता है, जिससे लगन लगती है उसकी रूपमाधुरी मन-मस्तिष्क पर छा जाती है। उसे देखे बगैर चैन नहीं आता और उसके बिना कोई दूजा नहीं भाता। दिन-रात मन की आंखों के आगे अपने आराध्य की मूरत छायी रहती है। विकल भाव शब्दों का रूप लेकर व्यक्त होते हैं। भाषा कोई भी लीजिए, आप इन स्थितियों में फेर नहीं पाएंगे।
कृष्णभक्त सूरदास के कृष्ण की रूपमाधुरी का वर्णन करनेवाले पद हों या विठुमाऊली की भक्ति में डूबे तुकाराम के अपने आराध्य के रूप का गुणगान करनेवाले पद हों – शब्दों का, उपमाओं का थोड़ा-बहुत फेर हो तो हो, भक्ति का भाव समान रूप से ओतप्रोत मिलेगा।
श्रीकृष्ण के बालरूप का वर्णन जैसा सूरदास ने किया है बिरला ही दुनिया के किसी कवि ने किया हो। बालकृष्ण के रूप की दिव्यता का जैसे वह भक्तों को दर्शन कराते हैं वह अनुपमेय है। इस पद में वह कह रहे हैं -
प्रेम और भक्ति में एक समानता है, जिससे लगन लगती है उसकी रूपमाधुरी मन-मस्तिष्क पर छा जाती है। उसे देखे बगैर चैन नहीं आता और उसके बिना कोई दूजा नहीं भाता। दिन-रात मन की आंखों के आगे अपने आराध्य की मूरत छायी रहती है। विकल भाव शब्दों का रूप लेकर व्यक्त होते हैं। भाषा कोई भी लीजिए, आप इन स्थितियों में फेर नहीं पाएंगे।
कृष्णभक्त सूरदास के कृष्ण की रूपमाधुरी का वर्णन करनेवाले पद हों या विठुमाऊली की भक्ति में डूबे तुकाराम के अपने आराध्य के रूप का गुणगान करनेवाले पद हों – शब्दों का, उपमाओं का थोड़ा-बहुत फेर हो तो हो, भक्ति का भाव समान रूप से ओतप्रोत मिलेगा।
श्रीकृष्ण के बालरूप का वर्णन जैसा सूरदास ने किया है बिरला ही दुनिया के किसी कवि ने किया हो। बालकृष्ण के रूप की दिव्यता का जैसे वह भक्तों को दर्शन कराते हैं वह अनुपमेय है। इस पद में वह कह रहे हैं -
सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥– सूरदास, ‘कविता कोश’ से *
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥– सूरदास, ‘कविता कोश’ से *
यहां सूरदास कह रहे हैं, घुटनों के बल आंगन में चलनेवाले बालकृष्ण कितने सुंदर लग रहे हैं। उनके एक हाथ में मक्खन का गोला है। उनके पूरे बदन में मिट्टी लगी है और मुंह पर दही लगा हुआ है। उनके गाल सुंदर हैं, चंचल आंखें नटखट भाव लिए हैं और उनके माथे पर गोरोचन का तिलक है। उनके माथे पर झूलती बालों की लट ऐसे लगती है मानो मुखरूपी कमल का मधुपान किए भंवरे मतवाले होकर झूम रहे हों। माता यशोदा ने उनके गले में हार और बघनखा पहनाया है जो उनपर खूब जंच रहा है। श्रीकृष्ण के इस बालरूप का दर्शन एक पल के लिए पाकर जीवन सार्थक हो जाता है, अन्यथा सौ कल्पों तक का जीवन भी निरर्थक है।
इसी प्रकार, मराठी संत कवि तुकाराम का कहना है कि, विठ्ठल का रूप मैं जीवन भर निहारता रहूं तब भी मेरा मन तृप्त नहीं होगा।
विठुमाउली की रूप माधुरी का वर्णन करते हुए तुकाराम की वाणी विशेष रूप से प्रवाही हो जाती है। अपने आराध्य के रूप का वर्णन करते हुए उन्होंने जो भावपूर्ण अभंग लिखे हैं उनमें सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय अभंग है –
इसी प्रकार, मराठी संत कवि तुकाराम का कहना है कि, विठ्ठल का रूप मैं जीवन भर निहारता रहूं तब भी मेरा मन तृप्त नहीं होगा।
विठुमाउली की रूप माधुरी का वर्णन करते हुए तुकाराम की वाणी विशेष रूप से प्रवाही हो जाती है। अपने आराध्य के रूप का वर्णन करते हुए उन्होंने जो भावपूर्ण अभंग लिखे हैं उनमें सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय अभंग है –
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी। कर कटावरी ठेवूनियां।।1।।
तुळसीचे हार गळां कासे पीतांबर। आवडे निरंतर ते चि रूप।।धृ।।
मकरकुंडले तळपती श्रवणीं। कंठी कौस्तुभमणि विराजित।।2।।
तुका म्हणे माझें हें चि सर्व सुख। पाहीन श्रीमुख आवडीनें।।3।।
-2. अभंगांचा गाथा, देहू प्रत **
तुळसीचे हार गळां कासे पीतांबर। आवडे निरंतर ते चि रूप।।धृ।।
मकरकुंडले तळपती श्रवणीं। कंठी कौस्तुभमणि विराजित।।2।।
तुका म्हणे माझें हें चि सर्व सुख। पाहीन श्रीमुख आवडीनें।।3।।
-2. अभंगांचा गाथा, देहू प्रत **
डॉ. आनन्दप्रकाश दीक्षित द्वारा हिंदी में अनुवाद-
"तेरा रूपनिहारू सुंदर, ईंट खडे, कटि हाथ धरे ॥
तुलसीमाल गले वर राजै, पीतांबर परिधान करे ॥
वही रूप भाए प्रतिपल, झलमल मकराकृति कुंडल कर्णं खरे ॥
कंठ विराजित कौस्तुभमणि, प्रभु अनुपम छवि निखरे ॥
तुका कहत पाऊँ पूरन सुख, श्रीमुख निरखूँ चाव भरे ॥"
http://tukaram.com/ hindi/ dixit. asp से धन्यवाद सहित.
"तेरा रूपनिहारू सुंदर, ईंट खडे, कटि हाथ धरे ॥
तुलसीमाल गले वर राजै, पीतांबर परिधान करे ॥
वही रूप भाए प्रतिपल, झलमल मकराकृति कुंडल कर्णं खरे ॥
कंठ विराजित कौस्तुभमणि, प्रभु अनुपम छवि निखरे ॥
तुका कहत पाऊँ पूरन सुख, श्रीमुख निरखूँ चाव भरे ॥"
http://tukaram.com/ hindi/ dixit. asp से धन्यवाद सहित.
माना जाता है कि, भक्त पुंडलिक ने कहा कि हे विठ्ठला, माता-पिता की सेवा में लगा हूं, अभी आता हूं। तब तक तुम इस ईंट पर खड़े रहो। बस, भाव का भूखा विठ्ठल तब से कमर पर हाथ रख कर ईंट पर खड़ा विठ्ठल पुंडलिक से मिलने का इंतजार कर रहा है। भक्त के लिए इतना उदार भाव रखनेवाले पांडुरंग की छवि का वर्णन करते हुए तुकाराम कहते हैं – ‘ईंट पर खड़े विठ्ठल के सुंदर रूप ने मन को मोह लिया है। विठ्ठल ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखे हैं, पीत वस्त्र धारण किया है और उनके गले में तुलसी की माला है। विठ्ठल का यह सुंदर रूप मुझे हमेशा मोहता आया है। उनके कानों के मकर-कुंडल चमचमाते हैं। विठ्ठल के गले में कौस्तुभमाला पड़ी है। विठ्ठल का यह रूप मेरे मन में बसा है, मेरे सुख का वही मूल है। उसके बगैर दुनिया केवल दुखमय है। इस सुंदर रूप के प्रति मेरा मोह कभी खत्म नहीं होगा, मैं हमेशा यह रूप निहारता रहूंगा।’
सच ही है, भगवान का रूप भक्त के मन की तड़प को मिटाता है। भक्त अपने आराध्य के रूप का दर्शन कर जन्म-मृत्यु के फेरे से पार पाता है। फिर वह मराठीभाषी विठ्ठलभक्त तुकाराम हो या ब्रज की मीठी बोली बोलनेवाले हिंदी कवि सूरदास हों। -©संध्या पेडणेकर
सच ही है, भगवान का रूप भक्त के मन की तड़प को मिटाता है। भक्त अपने आराध्य के रूप का दर्शन कर जन्म-मृत्यु के फेरे से पार पाता है। फिर वह मराठीभाषी विठ्ठलभक्त तुकाराम हो या ब्रज की मीठी बोली बोलनेवाले हिंदी कवि सूरदास हों। -©संध्या पेडणेकर
*संत कवि सूरदास का यह अनूठा पद सुरेश वाडकर के स्वर में सुनने के लिए यू-ट्यूब का लिंक है-
https://www.youtube.com/watch?v=keCiSa5hBB8
**संत तुकाराम का यह अनूठा पद लता मंगेशकर के स्वर में सुनने के लिए यू-ट्यूब का लिंक है-
https://www.youtube.com/watch?v=wuI6XPs4xS0
https://www.youtube.com/watch?v=keCiSa5hBB8
**संत तुकाराम का यह अनूठा पद लता मंगेशकर के स्वर में सुनने के लिए यू-ट्यूब का लिंक है-
https://www.youtube.com/watch?v=wuI6XPs4xS0